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प्रेमानंद जी महाराज का अनूठा संदेश: गृहस्थ जीवन में भक्ति और जिम्मेदारी का संतुलन

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प्रेमानंद जी महाराज का दृष्टिकोण

Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj

प्रेमानंद जी महाराज: अक्सर हम सोचते हैं कि लंबी पूजा ही भक्ति का प्रमाण है। लेकिन प्रेमानंद महाराज का विचार इससे भिन्न है। उनका कहना है कि गृहस्थ जीवन में पूजा का महत्व तब है जब यह परिवार की सुख-शांति और दायित्वों के साथ संतुलित हो। असली भक्ति वह है, जिसमें परिवार को समय पर भोजन मिले और सभी सदस्यों की मानसिक शांति बनी रहे। साधक का मन निरंतर नाम-स्मरण में लगा रहना चाहिए।


गृहस्थ जीवन में पूजा का सही स्वरूप

प्रेमानंद जी महाराज स्पष्ट करते हैं कि संन्यासी और गृहस्थ जीवन में ईश्वर की साधना में बड़ा अंतर है। गृहस्थ जीवन में भक्ति के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी ध्यान रखना आवश्यक है। यदि कोई महिला घंटों पूजा में लिपटी रहे और उसके बच्चे या पति भूखे रहें, तो वह पूजा अधूरी मानी जाएगी। भक्ति का असली अर्थ त्याग और सेवा में छिपा है। घर का भोजन पहले ठाकुरजी को अर्पित करना और फिर प्रेम से परिवार को खिलाना ही सच्ची पूजा है। यह तरीका परिवार की भूख मिटाने के साथ-साथ ईश्वर की भक्ति को भी जीवित रखता है।


भक्ति का सार है नाम जप


प्रेमानंद जी महाराज बार-बार कहते हैं कि जीवन अनिश्चित है और मृत्यु कभी भी आ सकती है। इसलिए सबसे सुरक्षित साधना है मन में निरंतर नाम-जप करना। जब तक श्वास चल रही है, तब तक भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए। यदि मृत्यु की घड़ी में भी नाम-जप चल रहा हो तो वही साधना आत्मा को भगवत्प्राप्ति की ओर ले जाती है। इस संसार में किसी भी व्रत, संकल्प या बाहरी दिखावे का कोई अस्तित्व नहीं। ये मृत्युलोक है। यहां सब कुछ अनिश्चित है। इसलिए किसी विशेष समय की अपेक्षा से सतत नाम-स्मरण कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
मृत्यु लोक की अनिश्चितता और साधक का मार्ग

यह जीवन अस्थिर है। कोई नहीं जानता कि कौन-सा क्षण अंतिम होगा। ऐसे में भक्ति का मार्ग भी सरल और सहज होना चाहिए। यदि मन में निरंतर हरिनाम गूंज रहा है, तो मृत्यु भी मोक्ष का द्वार बन जाती है। यही कारण है कि महाराज इसे बार-बार दोहराते हैं 'मन में नाम-जप चलते रहना चाहिए।'


दिनचर्या में अनुशासन का महत्व

सिर्फ पूजा या नाम-जप ही पर्याप्त नहीं है। दिनचर्या में संतुलन और अनुशासन भी जरूरी है। रात 10 बजे तक सो जाना, सोने से पहले भगवान का ध्यान करना और सुबह तड़के स्फूर्ति के साथ उठना साधना का अभिन्न हिस्सा है। यदि सोने से पहले नाम-स्मरण किया जाए तो नींद में भी वही जप चलता रहता है और अगले दिन मानसिक शांति तथा ताजगी का अनुभव होता है।


मोबाइल की लत से दूरी

प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि आज की सबसे बड़ी समस्या है मोबाइल की लत। लोग देर रात तक बिस्तर पर लेटे-लेटे फोन देखते रहते हैं। सोशल मीडिया, वीडियो और चैट में समय गंवाकर वे न केवल नींद खराब करते हैं, बल्कि मानसिक शांति भी खो देते हैं। प्रेमानंद महाराज चेतावनी देते हैं कि सोने से कम से कम एक घंटा पहले मोबाइल को स्विच ऑफ कर देना चाहिए। यह आदत न सिर्फ नींद सुधारती है बल्कि मन को भी स्थिर करती है।


नींद में भी चल सकता है नाम-जप

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भक्ति केवल जागते समय ही नहीं, बल्कि नींद में भी जारी रह सकती है। जब साधक सोने से पहले भगवान का ध्यान करता है और नाम का जप करता है, तो अवचेतन मन उसी भाव में डूब जाता है। नींद में भी नाम की गूंज बनी रहती है। परिणामस्वरूप सुबह उठने पर मन हल्का और प्रसन्न रहता है।
चिंता में भी ईश्वर पर विश्वास की शक्ति

अक्सर लोग मोबाइल तकिए के पास रखकर सोते हैं। कारण पूछने पर कहते हैं कि 'किसी इमरजेंसी की स्थिति में काम आएगा।' प्रेमानंद जी कहते हैं कि जब मोबाइल फोन नहीं था तो क्या लोगों की जिंदगी में सब अव्यवस्थित था। बल्कि अबसे कहीं अधिक सुकून था। प्रेमानंद महाराज का विश्वास है कि यदि व्यक्ति हर रात नाम-जप करते हुए सोए, तो जीवन में कोई आपात स्थिति आ ही नहीं सकती। क्योंकि भक्ति का कवच उसे हर कठिनाई से सुरक्षित रखता है।


भक्ति और जिम्मेदारी का सामंजस्य

गृहस्थ जीवन का सबसे बड़ा सौंदर्य यही है कि इसमें ईश्वर की साधना और परिवार की सेवा साथ-साथ चलती है। पूजा का वास्तविक उद्देश्य परिवार में प्रेम, संतोष और शांति बनाए रखना है। यदि भक्ति के कारण परिवार असंतुष्ट हो जाए, तो वह साधना अधूरी है। महाराज यही समझाते हैं कि गृहस्थ के लिए सबसे बड़ी पूजा है। अपने परिवार को सुखी रखना, भोजन कराना और साथ ही मन में निरंतर नाम जपना।


दिखावे से परे है भक्ति का सरल मार्ग

भक्ति का रास्ता जटिल अनुष्ठानों से नहीं, बल्कि सरल प्रेम और विश्वास से सजता है। प्रेमानंद जी कहते हैं कि जब मन में भगवान का नाम गूंजता है और घर में सामंजस्य बना रहता है, तब वही पूजा सबसे श्रेष्ठ बनती है। इस युग में आवश्यकता है बाहरी दिखावे को छोड़कर आत्मिक साधना की ओर बढ़ने की। आज की व्यस्त जीवनशैली में लंबी साधनाएं हर किसी के लिए संभव नहीं। लेकिन मन में निरंतर नाम जपना हर व्यक्ति कर सकता है। कामकाज करते हुए, रसोई में भोजन बनाते समय, यात्रा के दौरान या ऑफिस में बैठकर भी नाम-स्मरण किया जा सकता है। यही संतुलित साधना है, जो आधुनिक जीवन में भी सहज रूप से निभाई जा सकती है।


प्रेमानंद महाराज का संदेश

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महाराज के अनुसार भक्ति का सार दो बातों में है एक नाम जप और दूसरी अनुशासित जीवन। यदि गृहस्थ अपने दैनिक कर्तव्यों को मन से निभाए, बच्चों और परिवार का ध्यान रखे, समय पर सोए-जगे और हर क्षण भगवान का नाम स्मरण करे, तो वही जीवन पूर्ण है।
निष्कर्ष

गृहस्थ जीवन में पूजा का अर्थ घंटों की उपासना नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों और भक्ति का संतुलन है। परिवार की सेवा, नाम-स्मरण और अनुशासित जीवन ही सच्ची साधना है। प्रेमानंद महाराज का संदेश हर गृहस्थ के लिए प्रेरणा है कि दिखावे की पूजा से ऊपर उठकर जीवन को भक्ति और कर्तव्य के संतुलन से सजाया जाए।


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